संघर्षों की कोख से जन्मे थे स्मृतिशेष उपेन्द्र दत्त शुक्ल
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्वांचल में भाजपा के कद्दावर नेता उपेंद्र दत्त शुक्ल के असामयिक निधन से हर कोई हतप्रभ है। उपेंद्र दत्त शुक्ल का पूरा राजनीतिक कैरियर संघर्षों से भरा रहा। उनकी पहचान एक संघर्षशील नेता के तौर पर थी। अपने छात्र जीवन में ही 1977 में इमरजेंसी के दौरान उन्होंने मीसा के तहत गिरफ्तारी देने की कोशिश की लेकिन उम्र कम होने के चलते उनकी तमन्ना पूरी नहीं हो सकी। 1980 में वह भाजपा से जुड़ गए। 1996 में उन्होंने कौड़ीराम विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए। 2006 में कौड़ीराम सीट से निर्दल प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमाया लेकिन सफलता फिर भी नहीं मिल सकी। 2007 में एक फिर भाजपा के टिकट पर कौड़ीराम सीट से उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला लेकिन इस बार भी उन्हें कामयाबी नहीं मिली।
उनकी संघर्षशील छवि को देखते हुए ही 2018 के लोकसभा उपचुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रतिष्ठित गोरखपुर संसदीय सीट से भाजपा का प्रत्याशी बनाया। किस्मत ने इस बार भी उनका साथ नहीं दिया और उन्हें सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद से हार का मुंह देखना पड़ा। यह सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सांसद पद से इस्तीफा देने के चलते खाली हुई थी। हालांकि उपेंद्र किसी संवैधानिक पद को नहीं हासिल कर सके लेकिन संगठन के लिए उनके संघर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। भाजयुमो के प्रदेश मंत्री, गोरखपुर के जिलाध्यक्ष, क्षेत्रीय अध्यक्ष और प्रदेश उपाध्यक्ष जैसे दायित्वों को उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ निभाया और पार्टी की हर उम्मीद पर खरे उतरे।
उपेंद्र दत्त शुक्ल के अचानक हुए निधन की सूचना जंगल में आग की तरह फैली। हर व्यक्ति सूचना पाकर हतप्रभ नजर आया। उनके अचानक दुनिया छोडऩे की खबर पर सहसा किसी को विश्वास नहीं हुआ। सूचना की सच्चाई को लेकर जानकारी हासिल करने का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। परिवार के लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक सुबह 11 बजे तक उपेंद्र बिल्कुल स्वस्थ थे। 11:30 बजे के करीब उनके सीने में दर्द हुआ तो परिजन उन्हें लेकर गांधी आश्रम गली में मौजूद एक निजी अस्पताल पहुंचे। जांच के दौरान स्थिति नियंत्रण से बाहर होती देख परिजनों ने उन्हें छात्रसंघ चौराहा स्थिति एक दूसरे निजी अस्पताल ले जाने का फैसला किया। दूसरे अस्पताल आते-आते उनकी स्थिति बिगड़ गई। वहां पहुंचते ही उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया लेकिन थोड़ी ही देर में उन्होंने दम तोड़ दिया। चिकित्सकों द्वारा मृत घोषित किए जाने के बाद उनके पार्थिव शरीर को पहले अलहदादापुर स्थित आवास पर लाया गया। यहां से करीब 15 मिनट बाद परिजन उनके शव को लेकर पैतृक गांव सरया तिवारी चले गए। भाजपा के क्षेत्रीय मीडिया प्रभारी बृजेश राम त्रिपाठी ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार सोमवार सुबह 11 बजे बड़हलगंज के मुक्तिधाम घाट पर सरयू नदी के तट पर किया जाएगा। उपेंद्र अपने पीछे पत्नी सुभावती, पुत्र अरविंद व अमित और पुत्री विन्ध्यवासिनी सहित भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।
उपेंद्र शुक्ल की मौत की सूचना मिलने के बाद शोक जताने और भावभीनी श्रद्धांजलि देने का तांता लग गया। शोक जताने में दलीय सीमा भी टूटती नजर आई। शोक जताने वालों में पूर्व केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ल, बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी, सांसद रवि किशन, विधान परिषद के पूर्व सभापति और बसपा नेता गणेश शंकर पांडेय, सांसद रवि किशन, रमापति राम त्रिपाठी, हरीश द्विवेदी व कमलेश पासवान, नगर विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल, फतेह बहादुर सिंह, विपिन सिंह, डॉ. विमलेश पासवान, महेंद्र पाल सिंह, शीतल पांडेय सहित व्यापार जगत एवं अन्य संगठनों नें शोक जताया है ।